लहसुन की खेती: बुवाई, किस्में, उर्वरक और कीट नियंत्रण की पूरी जानकारी



लहसुन की खेती: पूरी जानकारी

लहसुन की फसल की बुवाई का समय आ गया है। यह पूरे भारत में की जाने वाली एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है। लहसुन की बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है और इसका अच्छा दाम मिलता है। इसका उपयोग केवल मसाले के रूप में ही नहीं, बल्कि औषधि के रूप में भी किया जाता है। यह अपच, फेफड़ों की बीमारियों, रक्तचाप, दमा आदि में लाभकारी है।

जलवायु

लहसुन मुख्यतः रबी की फसल है। इसके विकास के लिए मौसम सम (न ज्यादा गर्मी, न ज्यादा सर्दी) होना चाहिए। इसकी बुवाई का सर्वोत्तम समय 20 सितंबर से 20 नवंबर तक होता है।


लहसुन की मुख्य किस्में
लहसुन दो प्रकार के पाए जाते हैं:

1. एक गांठ वाला लहसुन – इसमें केवल एक ही गांठ होती है और जवे नहीं होते। इसका उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।

2. जवे वाला लहसुन – इसमें एक से अधिक जवे होते हैं और इसका उपयोग मसाले के रूप में होता है।


मुख्य किस्में:


1. जमुना सफेद (जी-1)

•रंग: उजला

•प्रत्येक गांठ में जवे: 28–30

•फसल तैयार होने में समय: 155–160 दिन

•उपज: 150–160 क्विंटल/हेक्टेयर

•रोग प्रतिरोधक: पर्पल ब्लाच



2. एग्रो फाउंड सफेद

•रंग: उजला

•प्रत्येक गांठ में जवे: 20–25

•फसल तैयार होने में समय: 160–165 दिन

•उपज: 130–140 क्विंटल/हेक्टेयर



3. पंजाब लहसुन
•रंग: उजला
•उपज: 90–100 क्विंटल/हेक्टेयर


•अन्य प्रजातियाँ: लहसुन 56, जमुना सफेद 2, जमुना सफेद 3, एग्रो फाउंड पार्वती।

भूमि

लहसुन की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन जीवाश्म युक्त दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है। यह मिट्टी पानी का निकास अच्छी तरह करती है।

बुवाई की विधि

1. लहसुन के जवे अलग करें।

2. पंक्ति से पंक्ति की दूरी: 10–15 सेंटीमीटर

3. जवे से जवे की दूरी: 7–8 सेंटीमीटर

4. गहराई: 2–3 सेंटीमीटर

5. बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।

कीट और रोग

कीट:

थिप्स – पत्तियों और डंठल से रस चूसते हैं, जिससे पत्तियों पर धब्बे दिखाई देते हैं।

निवारण: मेटासिसटॉक्स 1.5 मिली/लीटर पानी + 0.1% सेंडोमिट का छिड़काव, 15 दिन अंतराल पर 3–4 बार।

रोग:

1. नील-लोहित धब्बे – पत्तियों पर धब्बे दिखाई देते हैं।

उपचार: इंडोफिल-एम 45, 2.5 ग्राम/लीटर पानी, 15 दिन अंतराल पर 2–3 बार।


2. मृदु रोमल फफूंदी – पत्तियों और डंठल पर बैंगनी रंग के दाग।

उपचार: जीने या इंडोफिल एम 45, 2.5 ग्राम/लीटर पानी, 15 दिन अंतराल पर 2 बार।


टिप: कुआनो और सरयू नदी के मध्य बसे द्वाबा क्षेत्र के किसान इस फसल से अच्छा लाभ कमा सकते हैं। यह फसल आसानी से संग्रहीत की जा सकती है और उचित मूल्य पर बेची जा सकती है।
खाद और उर्वरक

1. गोबर की खाद/कम्पोस्ट: 200–300 क्विंटल/हेक्टेयर

2. नाइट्रोजन: 80–100 किलोग्राम/हेक्टेयर

3. फास्फोरस: 50–60 किलोग्राम/हेक्टेयर

4. पोटाश: 70–80 किलोग्राम/हेक्टेयर

5. जिंक सल्फेट: 20–25 किलोग्राम/हेक्टेयर


उर्वरक देने की विधि:

बुवाई से 15–20 दिन पहले कम्पोस्ट या गोबर खाद डालें और जुताई करें।

नाइट्रोजन को तीन हिस्सों में बाँटें। एक भाग नाइट्रोजन + फास्फोरस, पोटाश और जिंक की पूरी मात्रा अंतिम जुताई या बुवाई से 2 दिन पहले मिलाएँ।

पहली बार उर्वरक: बुवाई के 25–30 दिन बाद

दूसरी बार: 30–50 दिन बाद


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