आयुर्वेदिक ऋतुचर्या: हर मौसम में सही खानपान और स्वास्थ्य टिप्स


जीवन का आनंद लेने के लिए सबसे पहली शर्त स्वास्थ्य है। अगर व्यक्ति स्वस्थ नहीं है तो भले ही उसके पास सुख के सभी साधन उपलब्ध हों, लेकिन वह आनंद की अनुभूति नहीं कर सकता। सही जीवनचर्या की जानकारी के अभाव में हम अपना स्वास्थ्य खोते चले जाते हैं और एक समय ऐसा आता है जब हम स्वास्थ्यगत समस्याओं के जाल में फँस जाते हैं। इस समय जीवन शैली से संबंधित बीमारियों की भरमार है। हर व्यक्ति कहीं न कहीं शुगर, रक्तचाप, गठिया, मानसिक तनाव जैसी जीवन शैली से संबंधित बीमारियों की गिरफ्त में है।


जीवन शैली से संबंधित बीमारियों का कोई स्थायी इलाज नहीं है। इन्हें अपने रहन-सहन और खानपान में सुधार करके ही नियंत्रित किया जा सकता है। वैसे तो चिकित्सा की तमाम पद्धतियाँ प्रचलित हैं, लेकिन सभी चिकित्सा पद्धतियों का मूल आयुर्वेद ही है।

क्या कहता है आयुर्वेद

आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर कफ, वात और पित्त तीन तत्वों के संतुलन से ही स्वस्थ रहता है। अगर इनमें से एक भी तत्व असंतुलित हुआ तो शरीर अस्वस्थ हो जाएगा। इन तीनों तत्वों को ऋतु के अनुसार खानपान और दिनचर्या को अपनाकर संतुलित रखा जा सकता है। आइए जानते हैं कि आयुर्वेद में कितनी ऋतुएँ होती हैं और उनके अनुसार हमें कैसा खानपान रखना चाहिए।

हेमंत ऋतु (मध्य नवंबर से मध्य जनवरी)


इस ऋतु में सर्दियों की शुरुआत होती है, इसलिए शरीर की पाचन शक्ति भी मजबूत रहती है।

आहार सुझाव

•पौष्टिक और ऊष्मा प्रदान करने वाला भोजन करें।

•घी, तेल, दूध, मक्खन और सूखे मेवों का सेवन बढ़ाएँ।

•तिल से बने लड्डू, गजक और चिक्की जैसी चीजें खाएँ।

इस मौसम में मसालेदार और गर्म भोजन जैसे अदरक, लहसुन, काली मिर्च का उपयोग करें।


शिशिर ऋतु (मध्य जनवरी से मध्य मार्च)


इस मौसम में ठंड अपने चरम पर होती है।

आहार सुझाव

•ऊर्जा और गर्मी प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थ लें।

•गुड़, तिल, मूँगफली और मेवों का सेवन करें।

•गर्म सूप और हर्बल चाय पिएँ।

•भारी और तेलीय भोजन का सेवन कर सकते हैं।


बसंत ऋतु (मध्य मार्च से मध्य मई)


इस समय मौसम ठंड से गर्मी की ओर बढ़ता है, कफ दोष बढ़ सकता है।

आहार सुझाव

•पचने में आसान भोजन करें।

•जौ, गेहूँ और चने का सेवन करें।

•शहद का उपयोग करें, यह कफ को कम करने में मदद करता है।

•ताजे फल जैसे सेब, नाशपाती और अंगूर खाएँ।

•तली हुई और भारी चीजों से परहेज़ करें।


ग्रीष्म ऋतु (मध्य मई से मध्य जुलाई)

इस समय मौसम गर्म होता है, जो पित्त दोष को बढ़ावा देता है।

आहार सुझाव

•ठंडी और तरल पदार्थों का सेवन बढ़ाएँ।

•तरबूज, खीरा और खरबूजा जैसे रसीले फल खाएँ।

•नारियल पानी, छाछ और नींबू पिएँ।

•हल्के अनाज जैसे चावल और जौ का सेवन करें।

•मसालेदार, तैलीय और भारी भोजन से बचें।


वर्षा ऋतु (मध्य जुलाई से मध्य सितंबर)

इस मौसम में वातावरण में नमी बढ़ जाती है, जिससे वात दोष बढ़ सकता है।

आहार सुझाव

•ताजा और गर्म भोजन करें।

•उबला हुआ या फ़िल्टर किया हुआ पानी पिएँ।

•अनाज जैसे जौ, चावल और गेहूँ खाएँ।

•दही, छाछ और घी का सेवन सीमित करें।

•हरी पत्तेदार सब्जियों से बचें।



शरद ऋतु (मध्य सितंबर से मध्य नवंबर)

इस समय मौसम ठंडा होने लगता है और पित्त दोष का प्रभाव बढ़ सकता है।

आहार सुझाव

•मीठे, कड़वे और कसैले स्वाद वाले खाद्य पदार्थ खाएँ।

•चावल, जौ और गेहूँ का सेवन करें।

•सेब, अनार और अमरूद जैसे फल खाएँ।

•मसालेदार और तैलीय भोजन से परहेज़ करें।



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